Kaal – A Villain’s Story / काल – एक विलन की कहानी Part 3

"काल - एक विलन की कहानी"

नमस्कार दोस्तों,
आपने कई ऐसे विलन देखे होंगे जो स्वभाव से ही बुरे होते हैं। लेकिन मैं एक ऐसे विलन की कहानी रच रहा हूँ, जो असल में बुरा नहीं था। वह एक बहुत अच्छा इंसान था, लेकिन उसके साथ कुछ ऐसी घटनाएँ हुईं जिन्होंने उसे एक खतरनाक विलन बनने पर मजबूर कर दिया।
इस कहानी में मैं, लेखक प्रकाश राने , अपनी ज़िंदगी के कुछ कड़वे अनुभवों को भी शामिल करूँगा। कुछ चीज़ें मेरी असल ज़िंदगी से ली गई हैं, जिन्हें थोड़ा बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाएगा।
यह कहानी एक विलन के बनने की है — कि कैसे कोई इंसान विलन बनता है और उससे पहले वह क्या होता है।

कहानी यहाँ से शुरू होती है...

कहानी की शुरुआत में हम एक ऐसे इंसान को देखते हैं जिसके अंदर अजीबोगरीब अलौकिक शक्तियाँ (Supernatural Powers) हैं। वह बेहद शक्तिशाली है और अपनी सोच की ताकत से किसी भी वस्तु को नियंत्रित कर सकता है, उसे उठा सकता है या फेंक सकता है।
एक दृश्य में हम देखते हैं कि एक आदमी अपनी जान की भीख माँग रहा है और "काल" (विलन का नाम) उससे कहता है:
"चिंता मत करो, मैं तुम्हें इतनी जल्दी नहीं मारूँगा। मैं तुम्हें इतनी तकलीफ़ दूँगा कि तुम्हारी रूह काँप उठेगी।"
इसके बाद वह उस आदमी को बिजली का झटका देकर तड़पाता है। वह उसे हर दिन ऐसी ही तकलीफ़ देता है, लेकिन इतना ध्यान रखता है कि वह मरे नहीं।

काल हमेशा अपनी पहचान छिपाने के लिए एक मास्क पहनता है।
एक दिन वह आदमी हिम्मत करके पूछता है, "आख़िर मेरी गलती क्या है? तुम हो कौन और मुझे क्यों मारना चाहते हो?"
काल जवाब देता है, "नहीं पहचाना? मैं वही हूँ, जो सालों पहले तुम्हारी तरह ही तुम लोगों से अपनी जान की भीख माँग रहा था, लेकिन तुमने मेरी एक नहीं सुनी।"
यह कहकर काल अपना मास्क उतारता है। वह आदमी उसे पहचान नहीं पाता।
"नहीं पहचानोगे," काल कहता है। "मैं पहले ऐसा नहीं दिखता था, अब बहुत बदल चुका हूँ। लेकिन हूँ मैं वही।"

अब कहानी फ्लैशबैक में जाती है...


एक मासूम बच्चा

हम एक गरीब परिवार में एक छोटे बच्चे को देखते हैं, जिसका नाम विक्रम है। वह बहुत ही दयालु और भगवान पर विश्वास करने वाला बच्चा है, लेकिन बचपन से ही बहुत दुबला-पतला और कमज़ोर है। उस दुनिया में अमीर और गरीब का भेद बहुत गहरा था।
जब विक्रम स्कूल जाना शुरू करता है, तो वह क्लास में सबसे पीछे एक कोने में अकेला बैठता है, क्योंकि वह सबसे डरता है और पढ़ाई में भी अच्छा नहीं है। एक दिन उसकी टीचर उसे देखकर कहती है,
"चूहे की तरह कोने में क्यों दुबके हुए हो?"
यह सुनकर पूरी क्लास उस पर हँसने लगती है। लंच के समय भी सभी बच्चे उसे "चूहा" कहकर चिढ़ाने लगते हैं, जिससे वह बहुत दुखी हो जाता है।


स्कूल के बुरे दिन

कुछ साल बाद, विक्रम सातवीं कक्षा में एक लड़कों के स्कूल में पढ़ता है। वहाँ के शिक्षक बच्चों पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते। क्लास के बच्चे उसे "छछूंदर," "पतलू," "बारीक" जैसे नामों से बुलाते और बहुत परेशान करते हैं।
कमज़ोर होने की वजह से वह उनका सामना नहीं कर पाता था।
एक दिन तो हद हो जाती है, जब बड़े हॉल में कुछ बदमाश लड़के विक्रम को बुलाते हैं और सबके सामने उसकी पैंट उतारकर उसका मज़ाक उड़ाते हैं। वह रोता रहता है, लेकिन कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आता।

हाई स्कूल में आने के बाद भी कुछ नहीं बदलता। विक्रम शांत और शर्मीला था और हमेशा अकेला रहता था, क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था। जहाँ भी वह बैठता, लोग उसके पास से उठ जाते थे, क्योंकि वह गरीब और बहुत दुबला था।


अकेलेपन का एहसास

एक दिन उसकी क्लास में लड़कों की संख्या बहुत कम थी और लड़कियाँ बहुत ज़्यादा थीं। लंच के बाद क्लास में टीचर भी नहीं थे।
विक्रम के अलावा सिर्फ एक और लड़का था, जो कुछ देर बाद खिड़की से कूदकर भाग गया। अब विक्रम क्लास में अकेला लड़का बचा था।

सारी लड़कियाँ विक्रम को देख-देखकर हँस रही थीं और उसका मज़ाक उड़ा रही थीं। इससे दुखी और गुस्सा होकर विक्रम ने भी क्लास बंक करने का फैसला किया।
तभी लड़कियों की लीडर ने उसका मज़ाक उड़ाते हुए कहा,
"विक्रम, तुम भी खिड़की से कूदकर भाग जाओ।"
विक्रम ने डरते हुए कहा, "मुझसे नहीं होगा।"
लड़कियाँ हँसते हुए बोलीं, "कोशिश तो करो! अगर नहीं निकल पाए, तो हम तुम्हें मार-मारकर खिड़की से बाहर घुसेड़ देंगे!"

यह सुनकर विक्रम का दिल टूट गया और वह अपना बैग उठाकर मेन गेट से ही भाग गया।
हाई स्कूल में लड़के विक्रम को हमेशा मारते और परेशान करते थे।
वह कभी-कभी बाथरूम में जाकर रोता था। हमेशा दुखी रहता था।


मोहल्ले का बर्ताव

स्कूल के साथ-साथ मोहल्ले में भी विक्रम के साथ बहुत बुरा होता था।
मोहल्ले में विक्रम की उम्र के कोई बच्चे नहीं थे। अकेलापन दूर करने के लिए वह छोटे बच्चों के साथ खेलने चला जाता था।
लेकिन मोहल्ले के लोग यह देखकर उसके माता-पिता से शिकायत करते और उसे "पागल" कहते थे।
"इतना बड़ा हो गया है, लेकिन अक्ल नहीं है। छोटे बच्चों के साथ खेलता है।"

एक दिन वह खेलने के लिए एक बच्चे के घर गया, तो उस बच्चे ने कहा,
"तू आज से हमारे घर मत आना। तेरे आने से पापा मुझे मारते हैं।"
यह सुनकर विक्रम का दिल दहल गया और वह आँखों में आँसू लिए घर लौट आया।

एक बार एक छोटी बच्ची ने उसे अपने घर टीवी का सिग्नल ठीक करने के लिए बुलाया।
जैसे ही विक्रम दरवाज़े पर कदम रखने ही वाला था, अंदर से आवाज़ आई,
"उस पागल लड़के को क्यों बुलाया है?"
यह सुनकर वह आँसू लिए वहीं से लौट आया।

वह अक्सर गर्मी में छत पर सोता और भगवान से रो-रोकर पूछता,
"भगवान, आपने मुझे ऐसा क्यों बनाया? लोग मेरे साथ ऐसा क्यों करते हैं?"
अब वह हमेशा अकेले रहना और अपने आप से ही बात करना शुरू कर चुका था।

काल - एक विलन की कहानी (भाग 2)

अपमान का सिलसिला जारी रहता है...

रिश्तेदारी में

एक बार विक्रम अपने रिश्तेदार के घर गया था। पास के जंगल में सूखी लकड़ियाँ इकट्ठा करने के लिए वह कुछ रिश्तेदार लड़कों के साथ गया।
जब तेज़ हवा चलने लगी, तो विक्रम ने कहा,
"तूफ़ान आ रहा है, भागो!"
उसने यह इसलिए कहा ताकि किसी की आँख में कोई चीज़ न उड़ जाए। लेकिन उसकी बात को मज़ाक बनाकर रिश्तेदार के लड़के कहने लगे,
"हाँ-हाँ, भाग जा विक्रम, नहीं तो तू इस तूफान में उड़ जाएगा!"
इसके बाद वे हर बार उसे "तूफ़ान आया, भागो!" कहकर चिढ़ाने लगे।
इस अपमान से दुखी होकर विक्रम ने रिश्तेदारों के घर जाना ही बंद कर दिया।

अब उसे लगने लगा कि लोग उसे समझने की कोशिश ही नहीं करते।


पढ़ाई से दूरी

लोगों के तानों और बुरे व्यवहार के कारण विक्रम ने 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी।
अब उसके पास कोई रास्ता नहीं था। वह अकेला, टूटा हुआ और निराश हो चुका था।


ट्रेन का सफ़र और नया शहर

विक्रम काम की तलाश में ट्रेन से सफर करता है। लेकिन ट्रेन में उसे बैठने की जगह भी नहीं मिलती। मजबूरी में वह फर्श पर ही लेट जाता है।
तभी एक आदमी उसे लात मारकर कहता है,
"हट बे, गरीब कहीं का!"
और उसे ज़बरदस्ती खींचकर एक ओर कर देता है।

इस अपमान को वह चुपचाप सहता है।

शहर में पहुँचने पर, उसे एक पुराने जान-पहचान वाले दोस्त ने बुलाया था। उसी दोस्त की मदद से विक्रम को एक Company में काम मिल जाता है।
लेकिन वहाँ company का HR उसके दुबलेपन का मज़ाक उड़ाता है:
"चल के दिखा ज़रा!"
विक्रम चुपचाप चलकर दिखाता है, और वहाँ काम करने वाले लोग उस पर हँसते हैं।
विक्रम कमज़ोर था, लेकिन भीतर से हिम्मत वाला था।
वह जैसे-तैसे काम करता रहता है।


माया से मुलाक़ात

एक दिन चाय पीने के बाद वह बस स्टैंड पर बैठा होता है। वहीं पर माया नाम की एक लड़की भी बैठी होती है, जो रोज़ उसी बस से अपने काम पर जाती थी।
विक्रम भी उसी बस से फैक्ट्री जाता था।

धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे को नोटिस करने लगते हैं। वक्त के साथ बातचीत शुरू होती है।
अब वे बस में साथ बैठते, साथ सफर करते और छुट्टी के बाद थोड़ी देर एक-दूसरे से बातें करते।

कुछ समय बाद माया ने विक्रम से अपने प्यार का इज़हार किया।
विक्रम के लिए यह सब सपना जैसा था।
दोनो ने साथ जीने-मरने के सपने देखे… शादी के बारे में सोचने लगे।


To be continued…"
(इसके आगे की कहानी अगले भाग में देखने को मिलेगी)

लेखक: प्रकाश राने

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